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Friday 20 March 2015

Mera muqadar

मेरा मुकद्दर 

हर घड़ी खुद से उलझना है मुकद्दर मेरा,
मैं ही कश्ती हूं मुझी में है समंदर मेरा।


किससे पूछूं कि कहां गुम हूं बरसों से,
मेरा मुकदर
हर जगह ढूंढता फिरता है मुझे घर मेरा।

एक से हो गए मौसमों के चेहरे सारे,
मेरी आंखों से कहीं खो गया मंजर मेरा।

मुद्दतें बीत गई ख्वाब सुहाना देखे,
जागता रहता है हर नींद में बिस्तर मेरा।

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