मेरा मुकद्दर
हर घड़ी खुद से उलझना है मुकद्दर मेरा,
मैं ही कश्ती हूं मुझी में है समंदर मेरा।
किससे पूछूं कि कहां गुम हूं बरसों से,
मेरा मुकदर |
हर जगह ढूंढता फिरता है मुझे घर मेरा।
एक से हो गए मौसमों के चेहरे सारे,
मेरी आंखों से कहीं खो गया मंजर मेरा।
मुद्दतें बीत गई ख्वाब सुहाना देखे,
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